सादर समीक्षार्थ
विषय - चिट्ठी
विधा - कविता
जब चिट्ठी आती थी तुम्हारी
मन में रहता था उत्साह
डाकिए का रहता था इंतजार
दरवाजे पर रहती थी निगाह..।।
जब चिट्ठी आ जाती थी
दिल बाग बाग हो जाता था
जाने कितनी बार प्यार से मैं
चिठ्ठी को दुलारता था ..।।
छुपा होता था उसमें तुम्हारे
मीठे से प्यार का एहसास
अक्स उभरते रहते थे उसमें
हर शब्द के ही साथ साथ..।।
रोम-रोम से बरसती थी खुशियाँ
लगता था तुम कहीं पास हो
कितनी खुशियाँ मिलती थी
जब चिट्ठी तुम्हारी आती थी..।।
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
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