कवि सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता" जी द्वारा रचना (विषय-आजकल)

आजकल... 

जाने क्या हो गया आजकल
ज़हन मेरा खो गया आजकल

तन्हाई मुझे भाने लगी अकसर
वक़्त जैसे सो गया आजकल

नहीं मिलता मैं अब  किसी से
यारों का मोह गया आजकल

कितने ख़ुश लम्हे कैद थे अंदर
मेरा आंचल धो गया आजकल

अभी-अभी कुछ सोचा था मैंने
पल में ख्याल वो गया आजकल

हालात कितने नाज़ुक हैं "उड़ता"
नैना मेरे जैसे रो गया आजकल. 


स्वरचित मौलिक रचना 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )

udtasonu2003@gmail.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ