कविता
बहुत हो चुका
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बहुत हो चुका,अब लिखना छोड़ो,
बंदूक ,तलवार से अब नाता जोड़ो,
आओ हम सब मिलकर कर दें,
तमाम दुष्टों, दरिंदों का संहार।
बजा दो डंका बिगुल जागृति का,
अब नहीं सहेंगे तेरा अत्याचार,
गर कोई बहू बेटी पर आँख उठाये,
गर हम उन दरिन्दों को छोड़ते जायेंगे,
बढ़ते जायेंगे उनके कुकर्म, दुर्विचार,
आओ मिलकर उनका समूल नाश करें,
मचा दो चहुँओर शोर हाहाकार।
भय व्याप्त हो उन दरिन्दों में,
करने के पहले सोचें सौ बार,
आओ बचायें बहू-बेटियों की इज्जत,
करें सभी जन उनका आदर सत्कार।
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अरविन्द अकेला
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