कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा रचना “विषय-न्याय कहाँ?"

न्याय कहाँ?
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जहाँ लिंगभेद की,
बहती सरिता।
वह मिलता नारी को
  न्याय कहाँ?
नही शिक्षा-ज्ञान की,
ज्योति जहाँ।
ना हो जबतक ,
विचारों में परिवर्तन।
जहाँ नैतिकता और,
संस्कार का ज्ञान नहीं।
अज्ञानता,अशिक्षा का,
घोर अंधकार जहाँ।
परवरिश में बेटी का,
बेटे जैसा मान नही।
वहाँ नारी परअत्याचारों के,
  मिलते न्याय कहाँ?
नारी को समझे,
एक खिलौना इंसान नही।
नही नारी जीवित ,
प्राणी का पर्याय जहाँ।
पुरुष अहम  होताआहत,
जब नारी प्रतिकार करे।
चाहे पुरुष नारी पर,
पाशविक अत्याचार करे।
अपराधभेद खुलने के भय से,
जबान काट लाचार करे।
नारी जीवन की वजह से
मन-भर अत्याचार करे।
आर्थिक लाचारी समाजिक शोषण,
वहाँ नारी कैसे इनकार करें?
झूठी रश्मो और कसमो से,
हटकर समाजिक व्यवहार करें।
पहले से शोषित नारी पर,
सामाजिक अत्याचार बढ़े।
उस संकीर्ण विचारों में नारी,
को मिलता न्याय कहाँ?
जहाँ नारी को मर्जी से जीने का,
मिलता अधिकार नही।
किसी को नारी के जख्मो से,
पीहर में भी सरोकार नही।
जीवित नारी सी प्राणी के लिए, 
रखता नही कोई विचार सही।
समान शिक्षा का अधिकार नही जहाँ,
नारी को मिलता न्याय कहाँ।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय




  

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