सादर समीक्षार्थ
विषय- यह वक्त बड़ा बेमानी सा है
यह वक्त बड़ा बेमानी सा है
हर इंसान बना शैतान सा है
नहीं दिखता कहीं ईमान सा
लगता फँसा भंवर जाल सा..।।
यह वक्त बड़ा बेमानी सा है
दया धर्म कहीं नजर न आता
मन व्यथित अब बहुत है होता
नहीं भरोसा किसी पर होता..।।
यह वक्त बड़ा बेमानी सा है
जीवन बहता पानी सा है
नित दिन ढलता जवानी सा है
हर पल बढ़ता बुढ़ापा सा है..।।
यह वक्त बड़ा बेमानी सा है
झूठी शान में ही डूबा है
सच से होता यह दूर सा है
पहचान अपनी खो चुका है..।।
राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
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