मांँ कालरात्रि
शांतमय पार्वती ने भयावह रूप धरी है,
दूष्ट रक्तबीज के संहार का ये शुभ घड़ी आई हैं।
अंधकार का विनाश लिए कालरात्रि आईं है,
दैत्य की सर्वनाश लिए महाकाली आईं हैं।
भक्त जनों को सिद्धिदात्री, संकटहरणी वह शुभंकरी है,
असूरो की संहारिणी वह रूद्राणी है।
त्रिनयनी विकराल रुप धारी, मन में ज्वाला के अंगारे हैं,
विद्युत तेज कंठा, खंडा खप्पर धारिनी, गर्दभ की वह सवारी है।
शक्ति और साहस का प्रतीक महागौरी की वह रूप हैं,
आज भी जनमानस के बीच नारी का वह चंडी स्वरूप हैं।
हर नारी के भीतर नवदुर्गा समाई है,
दानव रूपी मानव की अंत की घड़ी अब आईं हैं।
-स्मिता पाल (साईं स्मिता), झारखंड
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