सड़क और ज़िन्दगी (वृहद काव्य-अंश)
गाँव की सड़क
और
वीरान-सी ज़िन्दगी..
शहरों में ज़िंदगी
हरी-भरी !
भारत की आत्मा अचेत-सी होती
वाह री किस्मत !हाय री किस्मत..
हज़ारों को खिलानेवाला
मर जा रहा खुद भूख से..
या हज़ार रूपये भी पास न होने के दुःख से !
लोग कहते हैं कि लोग गाँव से शहर जा रहे..
पर
मुझे तो यही दिखता है
गाँव छोड़ कर शहर जानेवाले लोग
गरीबों का खून चूसनेवाले जोंक बन कर
शहर की ओर जानेवाली सड़कों पर रेंगते हुए जा रहे हैं..
वरना
कौन कम्बख़्त
अपनी आत्मा को त्याग कर
जीवित रह सकता है भला !
अब
गाँव की हरियाली धूल खा रही
शहर की ज़िन्दगी जाने क्यूँ हरी-भरी नज़र आ रही....
क्रमशः....
रूपक क्रांति
उपाध्यक्ष, बदलाव मंच
0 टिप्पणियाँ