कवि सुबाष चन्द्र जी द्वारा रचना (विषय- गाँधी, सत्य, अहिंसा )

बदलाव मंच (राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय ) साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु रचना
विषय - गाँधी, सत्य, अहिंसा 
विधा- गद्य लेखन
दिनांक - 02-10-2020
दिन - शुक्रवार 
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महात्मा गांधी ने स्वराज की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा था कि स्वराज्य का मतलब अधिकाधिक  हिंदुओं का प्रभुत्व न न होकर धर्म -जाति के भेदभाव से अछूते रखकर एक समतामूलक समाज का लोक सम्मति से शासन करना है इसको लेकर उन्होंने समय-समय पर यंग इंडिया, हरिजन, हरिजन सेवक जैसी पत्र-पत्रिकाओं में अपने विचारों को उजागर भी किया । उन्होंने स्वराज को पवित्र व वैदिक शब्द के रूप में इंगित करते हुए उसे आत्म- शाशन व आत्म संयम से परिभाषित भी किया ।
आजादी के पुरोधा व पथ- प्रदर्शक, महान व्यक्तित्व के धनी, सरलता, सौजन्यता और उदारता की मूर्ति व अहिंसा के कटु पक्षधर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने कि उस समय थे । भले ही 30 जनवरी 1948 को शाम की प्रार्थना के दौरान बिरला हाउस में 78 वर्ष की उम्र में नाथूराम गोडसे की गोली ने गांधी के शरीर की हत्या कर दी हो लेकिन उनकी अजर अमर देव तुल्य आत्मा अभी भारत और भारतीयों को गांधी दर्शन के रूप में अपने आत्मीय अहसास का अनुभव करा रही है l गांधी जी के द्वारा आजादी के यज्ञ में दिए गए अपने कर्मों की आहूति से अच्छाई और सच्चाई की ज्योति आज भी जगमगा रही है ।
गांधी जी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है । उन्होंने अपने सपनों के भारत में गांव के विकास को प्रमुखता प्रदान करके उससे देश की उन्नति निर्धारित होने की बात भी कही थी। महात्मा गांधी ने अपने सपनों के भारत में अपने व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकता की पूर्ति कर के ग्राम स्वराज्य ,पंचायतराज , ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा , गांव की सफाई व गांव का समग्र विकास के माध्यम से एक स्वाबलंबी व सशक्त देश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था ।
सत्य साध्य है तो अहिंसा साधन। प्रेम और सद्भाव से किसी भी पत्थर दिल को मोम की तरफ पिघलाया जा सकता है ।विभिन्न धर्म जाति संप्रदाय के रूप में तिल की तरफ बिखरे समाज को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य प्रेम और सद्भाव से ही संभव है ।आपसी सौहार्द की भावना से ही कोई देश स्वर्ग का प्रतिरूप धारण कर विकास की बुलंदियों को स्पर्श कर सकता है ।स्वच्छता गांधी जी के जीवन का अनिवार्य अंग था । स्वच्छता को लेकर गांधीजी का मानना था कि यदि कोई व्यक्ति  स्वच्छ नहीं है तो वह स्वयं भी स्वस्थ नहीं रह सकता ।

डॉ सुबाष चंद्र ,वाराणसी ,उ0 प्र0

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