कवियत्री रंजना वर्मा उन्मुक्त जी द्वारा रचना “जिन्दगी”

विधा- सरसी छंद 
जिन्दगी 
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ईश्वर का उपहार जिन्दगी,मानो ये अनमोल ।
किस्मत से मिलता ये जीवन, समझो इसका मोल।
चलने का नाम है जिन्दगी, गति ही है पहचान ।
करते रहे कर्म सब अपना,पूरे हो अरमान ।

चलते चलते डगर पे आगे, मंजिल होती आस।
हमें सफलता सदा मिलेगी, हिम्मत जब हो पास।
दौलत की चकाचौंध में है, सारा ये संसार ।
होती दो दिनों की चाँदनी, फिर घोर अंधकार ।
जीवन को सब ऐसे जियें, बढ़ता जाए मान ।
करते रहें कर्म सब अपना, पूरे हो अरमान ।

काँटो भरी डगर हो चाहें,या आये तुफान ।
कदम कभी ना रुके हमारा, डगर बने आसान ।
कदम कदम पर मिलते साथी, पाते उनका प्यार ।
लगे सफर तब कितना प्यारा, मिले खुशियाँ अपार।
फूल हजारों खिलते दिल में, होठों पे मुस्कान ।
करते रहें कर्म सब अपना,पूरे हो अरमान ।

             रंजना वर्मा उन्मुक्त

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