कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा रचना “सिंदूर”

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 🌹  सिंदूर🌹
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विवाह के रश्मों रिवाज द्वारा,
विवाह के मंडप में पहली बार।
दुल्हन के मांग में दूल्हे ने डाला,
सुहाग का प्रतीक सुर्ख लाल सिंदूर।
सजी दुल्हन सुहाग की लाली चुनर,
नारी के मांग बीच चमकता सिंदूर ।
चमके दुल्हन के माथे पर बिंदिया,
 दुल्हन के नाकों में नथ ना आये निंदिया।
सिंदूर का लाल सुर्ख रंग सजाए खुशियां,
 ये सिंदूर विवाहिता के सुहाग का  गुरुर।
हाथ मे मेहँदी ये सभी सुहागन के नूर,
 चुटकी सिंदूर के लिये बिटियां हुई दूर।
एक चुटकी सिंदूर की कीमत अनमोल,
दूल्हे के बापू बोलें बड़े-बड़े बोल।
दुल्हन की चेहरे की शोभा मांग में सिंदूर,
बेटी के पिता चुटकी सिंदूर के लिए मजबूर।
ये कैसा बना इस दुनियाँ का झूठा दस्तूर?
कब तक रूढ़ियों में पिसती रहेगी परंपराएं।
एक सिंदूर के नाम पर बेटियां जलाई जाए,
इन ढकोसलों को हम कहाँ तक मिटाएँ?
दहेज और शादी के बहाने बेटियां जलाई जाए,
चुटकी सिंदूर की कीमत बेटियां कबतक चुकाएं?
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स्वरचित और मौलिक
 सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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