कवि बाबूराम जी द्वारा 'हे कृषक तुम हो महान' विषय पर रचना

हे  कृषक  तुम   हो महान
*************************

हो भव्य देव भू के भगवान ।
हे  कृषक  तुम  हो   महान ।

माँ अवनी का आदर करते ।
सुचि फसलों से गोदी भरते।
पूर्ति कर चारों  आश्रम की -
जग की दुख आफत हरते ।

सबके मुख पर लाते मुस्कान।
हे   कृषक  तुम   हो   महान ।

सुखा ,बाढ़ या  हो  माहामारी।
प्रगट करते ना कभी  लाचारी।
दृढ़   व्रती   संकल्पित  होकर-
फसल  उगाते   प्यारी - प्यारी।

विष  भी  पी  रहते  अगुआन ।
हे   कृषक   तुम   हो   महान ।

सेवा ,दान   अनमोल  तुम्हारा।
हो अतुल्य कहाँ  तोल तुम्हारा।
सावन   जैसा  मन  भावन   है-
जग   में   मिठे   बोल  तुम्हारा।

सब  कुछ  सहते  हो लहुलुहान।
हे    कृषक    तुम    हो   महान।

चरणों   में   शत -शत  वंदन  है।
तुम्हें  कोटि-कोटि अभिनंदन  है।
तेरे  मेहनत   के  श्वेद  कण    से-
धुल  जाता  जग  का  क्रंदन   है।

तुम  हो  सपूत  धरती  के  शान।
हे    कृषक    तुम    हो    महान।

*************************
बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार )
====================

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ