हे कृषक तुम हो महान
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हो भव्य देव भू के भगवान ।
हे कृषक तुम हो महान ।
माँ अवनी का आदर करते ।
सुचि फसलों से गोदी भरते।
पूर्ति कर चारों आश्रम की -
जग की दुख आफत हरते ।
सबके मुख पर लाते मुस्कान।
हे कृषक तुम हो महान ।
सुखा ,बाढ़ या हो माहामारी।
प्रगट करते ना कभी लाचारी।
दृढ़ व्रती संकल्पित होकर-
फसल उगाते प्यारी - प्यारी।
विष भी पी रहते अगुआन ।
हे कृषक तुम हो महान ।
सेवा ,दान अनमोल तुम्हारा।
हो अतुल्य कहाँ तोल तुम्हारा।
सावन जैसा मन भावन है-
जग में मिठे बोल तुम्हारा।
सब कुछ सहते हो लहुलुहान।
हे कृषक तुम हो महान।
चरणों में शत -शत वंदन है।
तुम्हें कोटि-कोटि अभिनंदन है।
तेरे मेहनत के श्वेद कण से-
धुल जाता जग का क्रंदन है।
तुम हो सपूत धरती के शान।
हे कृषक तुम हो महान।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार )
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