*नमन बदलाव मंच*
*दिनांक 06/10/2020*
*वो दिन ना लौटेंगे*
थी दंडवत नमस्ते चरण स्पर्श राम-राम,
न टाटा ना बाय-बाय होती थी।
था दूध दही घी बुरा मेहमान नवाजी ,
कोल्ड ड्रिंक ना चाय होती थी
होते थे सच्चे दिल बद्दुआ ना हाय थी ।
वो दिन ना लौटेंगे जब घर में,
सब की एक राय थी।
घर की औरत सबको ,
एक सूत्र में पिरोती थीं।
लेकर दर्द एक दूजे का ,
एक दूजे के आंसु रोती थीं।
प्यार के पकवान , गुजियां प्रेम की चासनी में डुबाये थी।
वो दिन ना लौटेंगे जब घर में, सबकी एक राय थी।।1
त्यौहारों पर मिलजुल कर दुआ,
की बालाएं होती थी।
स्वस्थ शरीर सुंदर चेहरे उम्र की,
ना थाय होती थी ।
जौ चने की रोटी हाथ में गुड़ ,
और छाय होती थी।
अर्जुन सी दृष्टि, भीम सी ताकत,
युधिष्ठिर सी बुद्धि, नकुल सी काय थी।।
वो दिन ना लौटेंगे जब घर में,
सब की एक राय थी।।।2
चाणक्य नीति कृष्ण और ,
राम सी सरकार ।
नजर नहीं आते अब ,
सावित्री और भरत जैसे प्यार ।
सच्चे दिल सच्चे वादे ,
सच्चे रिश्ते सच्ची निगाह थी ।
वो दिन ना लौटेंगे जब घर में,
सबकी एक राय थी।।।3
विजय थी जो ,
नहीं अब पृथ्वीराज सी हार।
रहा नहीं सूरदास सा ,
कहीं भी श्रंगार।
अब फरेब की जब,
वफा की न थाय थी।
वो दिन ना लौटेंगे जब घर में
सब की एक राय थी ।।।4
तंगी में सादगी,
चिथडों में खुशहाली थी ।
बिन रंगो की होली,
दियों बिन सच्ची दीवाली थी।
सुकून था भले ही गाड़ी ,
बंगले ना मोटी आई थी ।
वो दिन ना लौट आएंगे जब घर में
सब की राय थी ।।।।5
बंदूक बम धमाके आतंक गोली थी ।
वतन से था प्यार सबको,
अब्दुल हमीद सी बोली थी।
वो ही थी मीरा सी भगत,
वही पन्ना सी धाय थी।।
वोदिन ना लौट आएंगे जब घर में सब की एक राय थी।।।।6
लूट खसोट गुंडागर्दी,
और खून खराबा है।
संसद और कुर्सी ही ,
कर्णधारों का काशी और काबा है।
नहीं रहे वे लगन जिनको परिवार
की पानी से मीन की नाय थी।
वो दिन ना लौटेंगे जब घर में
सब की एक राय थी।।।।7
*मौलिक*
*एल .एस.तोमर*
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