कवयित्री मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ जी द्वारा रचना “देखा न करो"

*देखा न करो*

*इस तरह मुझे देखा ना करो
 तेरे प्यार का प्रतिदान मैं दे नहीं      
   सकती*


गहराती शाम में मेरा ही अक्स
मुझे मजबूर कर देता है
और तुम्हारी ओर खींचती चली      
जाती हूंँ
तुम्हारा मुस्कुराना अंदर तक भिगो   
जाता है
और मैं तुझ में ही खोने लगती हूंँ तुम्हारे रंग में सराबोर मेरा तन-बदन    
पंँख लगाकर उड़ जाता है
और मैं फूलों भरी वादियों में फैलने      
लगती हूंँ
इतने प्यार से न देखो मुझे 
तुझमें ही बहने लगती हूंँ।

*इस तरह मुझे देखा न करो
तेरे प्यार का प्रतिदान मैं दे नहीं    
सकती* 

सारी दुनिया से छुप-छुपा कर मेरा   
तुम्हारा मिलना
रोशनियों की बारात अमलतास के    
झूमर 
गमकते बेला-मोगरा,रजनीगंधा की    
कतारें
रातरानी,जूही चमेली की मदमाती    
खुशबू 
मुझे कहीं और ले जाती हैं 
मन के आंँगन में तृप्ति की बौछारें
मुझे तरबतर कर जाती हैं
और मैं डूबने-उतराने लगती हूंँ।

*इस तरह मुझे देखा ना करो 
तेरे प्यार का प्रतिदान मैं दे नहीं      सकती।।*

कोमल,छोटे पंँखों वाली रानी परी
ऊपरी दुनिया से धरती पर आती    
चांँदनी रात में तैरती,घूमती,चढ़ती   
दिलवालों से मिलती-जुलती
उनके दिलों में बसती,मैंने देखा है अगली पूनम की रात
फिर से मिलने की अरमां संँजोये   
अपने सुनहरे पंँखों को समेटते   
खामोशी की चादर ओढ़ते
गुफा में रानी परी वापस हो जाती है।

*चांद*! इस तरह से देखा ना करो 
तेरे प्यार का प्रतिदान मैं दे नहीं     
सकती*

मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ