कवयित्री एकता कुमारी जी द्वारा रचना “आरज़ू है दिलवर मेरे"

*आरज़ू है दिलवर मेरे*
  मेरा श्रृंगार करना तब हो गया मुकम्मल भर,
जब देखा तुमने मुझको नजर भर,प्रियवर।

यूँ तो मैं पहले भी सजती संवरती रहती थी, 
मगर, कभी नहीं हुआ था ऐसा कोई असर। 

याद है जब तुम हमको  मिले थे पहली बार,
रूह को सुकून मिला,मिली जब नजर से नजर।

तेरी प्रीत का जादू ऐसा चला मुझपे,प्रियतम, 
झील सी मेरी गहरी आँखें भी हो गई थी मुखर। 


मेरे हाथों की हिना का रंग भी निखर गया था, 
हौले-हौले जब मेरे दिल में होने लगा तेरा बसर। 

मेरा मासूम चेहरा भी खिल उठा था,जब देखा,
नजरों की सीढ़ी से तेरी आंखों में आयी थी उतर। 

यूँ तो मिले थे तमाम राहों में अनगिनत चेहरे,
लेकिन,ऐसा किसी का नहीं हुआ कोई असर।

आरज़ू है दिलवर, मेरी यही मेरे रब से सदा ,
तेरी ही बाहों में ही बीत जाए मेरी सारी  उमर।
        ** एकता कुमारी, बिहार **

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