कवयित्री नेहा जैन जी द्वारा रचना “कैसे कह दू तुम क्या हो"

कैसे कह दू तुम क्या हो
कोई रूठा सा ख्वाब हो
कितनी अधूरी मेरी हसरतों की किताब हो
कायनात में मेरी तेरी ही एक अनकहीं सी है दास्ताँ
कितनी मुकम्मल है ये चाहते हमारी
आँखों मे खुमारी औऱ उसमे तुम
जिसमें हजार ख्वाब  बसते हैं
उस दिल मे तुम
कोई  मेरी खोई सी मुस्कान तुम
कब कब जागी हूँ नींद से लेकर
तुम्हारा नाम,
कहो न कहो सब सुनती हूं मैं
धड़कनो के शोर में तुमको चुनती हूँ मैं
क्या आलम है हमारा जाने जमाना
जो जानकर   भी अनजान हैं वो हो तुम
मेरी आँखों की हर बारिश का
रंग हो तुम
मेरे जीवन के सुरमयी आसमान का काजल हो तुम
कभी तो मिलने आओ
कमियां है मुझमे लाख
कोई तो खूबी बताओ तुम
इंतजार करते करते शाम हुई
कोई सुबह तो लाओ तुम
कब से बैठी हूँ ख़ुद को तेरे हवाले करके
कोई तो तारीख़ बता आने की 
हम बमुश्किल साँसों को रुकने से रोके है
स्वरचित
नेहा जैन

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