*नमन मंच*
*विधा-कविता*
*शीर्षक-खता*
मैं तुझे चाहती हूंँ,
क्या खता करती हूँ।।
क्या सच्चा प्रेम करना मना है,
फिर तो राधा-कृष्ण प्रेम भी गुनाह है।।
तुम्हें कितने सबूत देंगे,
जब-तक तुम्हें विश्वास हो,
तब-तक ईश्वर हमारे प्राण ही हर लेंगे।।
माना कि आज हम अकेले हैं,
हमने भी प्रेम-रूपी सपने खेले हैं।।
कोई दुनिया में स्थायी नहीं,
विश्वास कि भविष्य भी अस्थायी नहीं।।
आज तुम्हारा समय है,
कल हमारा भी समय आएगा।
तुम कितना भी बुलाना पर
आज का प्रेम रूपी समय
फिर पुनः नहीं आएगा।
तुम भूल चुके हो मुझको।
हम भी भूल जाएंगे, तुझको।।
क्योंकि राधा-कृष्ण का मिलन सम्भव नहीं..
पर वक्त ने चाहा तो कुछ भी असम्भव नहीं..
थोड़े समय की गुंजाइश चाहिए।
कहती हूँ,उस प्रभु से-
"अब तो प्रेमाकांक्षा पूर्ण होनी चाहिए।।"
"अब तो प्रेमाकांक्षा पूर्ण होनी चाहिए।।"
-रूपा व्यास
*अध्यक्षा,राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय 'बदलाव मंच'*
शिक्षिका,सेंट पॉल्स सैकंडरी स्कूल,'परमाणु नगरी' रावतभाटा,चित्तौड़गढ़,राजस्थान।
*यह मेरी मौलिक व स्वरचित रचना है।*
1 टिप्पणियाँ
वाहहहहह
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