सादर समीक्षार्थ
विषय - कर्त्तव्य
विधा - लोकगीत
कर्त्तव्य पथ पर बढ़ो पथिक
धैर्य न कभी भी खोना तुम
स्वयँ हट जाएँगे सभी कंटक
विचलित कभी न होना तुम..।।
मंजिल उनको ही मिलती है
जो निर्भय होकर बढ़ते हैं
आत्मविश्वास सदा रखते हैं
अपने कर्तव्य सभी निभाते हैं..।।
नहीं किसी की हँसी उड़ाते
निर्बल का बल बन जाते हैं
चाहे कैसी आ जाए विपदा
कर्तव्य न कभी वे तजते हैं..।।
तूफानों से नहीं हैं डरते
नित दिन सागर मथते हैं
कठिन परिश्रम करते हैं
कर्तव्य पथ पर बढ़ते हैं..।।
डॉ.राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
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