मंच को नमन
विषय -रिश्तों की डोरी
कभी कमजोर मत होने देना
स्वप्न मैं भी नहीं टूटने देना
सिखाती सुख में दुख में
हम सब को साथ में रहना
सूत के धागे के समान
कोमल होती है रिश्तो की डोरी
भाई बहन का प्यार
माता-पिता का दुलार
दादा दादी का आशीष
मित्रों का सत्कार
बांधे रखती है
नेह से रिश्तों की डोरी
इतिहास इसका गवाह
इसकी नहीं है कोई थाह
सागर से गहरी झरने मीठी
नहीं रखती है कोई चाह
निर्धन भाव रखती है
सरिता सम होती रिश्तों की डोरी
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
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