चंन्द्र प्रकाश गुप्त‌ "चंन्द्र" जी द्वारा विषय नवदुर्गा पर विशेष रचना#

विषय  -  नवरात्रि
शीर्षक -   नवदुर्गा 

हे सिद्धिदात्री नवदुर्गा माता तुम ही हो जग की त्राता

जो शरण तुम्हारी पाता निर्भय अमर हो जाता

तुम हो अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता

यश, वैभव ,सुख, शांति पराक्रम दाता

नयन कोटि सूर्य समप्रभ तुम्हारे अनंत चंद्र मुख छवि तुम्हारे

एक हस्त में पुष्प कमल तुम्हारे दूजे हस्त त्रिशूल तुम्हारे

भक्त सदा ही तुम्हारे सहारे तुमने महिषासुर- रक्त बीज संहारे

शिव तुम बिन रहते सदा अधूरे ब्रह्मा विष्णु नहीं तुम बिन पूरे

अभी जग के सारे सुत तुम्हें पुकारे , मां आओ व्याधि करोना हमें निहारे

जग के पुत्र कुपुत्र हो सकते हैं मां

जिनको तुमने जाया है उनका उद्धार करो मां

 तुम जो कुपित हुईं हमें कौन उबारेगा मां
 
क्षण में जग नश्वर हो जायेगा मां

मां अब आ जाओ मेरे हृदय में

नव नूतन प्राण भरो मेरे जीवन में

रिद्धि-सिद्धि मुझे नहीं चाहिए

कामधेनु कल्पवृक्ष नहीं चाहिए

बस धीर वीर गंभीर वना दो

शुचिता समता शौर्य शक्ति जगा दो

हंस हंस करूं सामना आंधी और तूफानों से

जीवन का मोह छोड़ टकराता रहूं अरि , शैतानों से

हे सिद्धिदात्री नवदुर्गा माता तुम ही हो जग की त्राता

जो शरण तुम्हारी पाता निर्भय अमर हो जाता


         

   जय नवदुर्गा माता 

          

       वन्दे मातरम् 

        चंन्द्र प्रकाश गुप्त‌ "चंन्द्र"
          अहमदाबाद , गुजरात

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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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