शशिलता पाण्डेयबलिया (उत्तर प्रदेश) जी द्वारा माँ कालरात्रि पर बेहतरीन रचना#

नवरात्रि में माँ का सातवाँ स्वरूप,
माँ कालरात्रि
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जब-धरती पर घटा धर्म असुरों के,
अत्याचारों से मानवता त्रस्त हुई।
तब माता दुर्गा कालरात्रि के स्वरूप,
भयंकर रूप में रक्षा हेतु प्रकट हुई।
रक्तबीज के असुर प्रहार से,
तीनो लोक की सुख-शांति विकट हुई।
आक्रोशित रोन्द्र रूप में माता ने,
 गर्जन कर रक्तबीज संहार किया।
भक्तों के रक्षा के खतिर चंडी रूप ,
मुक्तकेशी, घोररूपा बन अवतार लिया।
शुभ-निशुम्भ के अत्याचारों से त्रस्त,
मानवता की रक्षा कर उपकार किया।
जय-जय माता कालरात्रि,महाबला,
धारण कर अग्निज्वाला रोन्द्र रूप में।
अवतार लेकर करो जग का भला,
धरती पर आसुरी शक्ति का प्रभाव बढ़ा।
खड्ग,कटार ले करो संहार बन अग्निज्वाला,
सारी दुनियाँ पुकारती त्राहिमाम कर।
करो रक्षा कराली काली कपालिनी बनकर,
विकल सारी दुनियाँ को माँ तेरा इंतजार।
जल्दी से माँ कर अपने प्यारे भक्तों का उद्धार,
जल्दी से सुन मईया भक्तों की पुकार।
रोग,दुख,शोक हर ले माँ तेरी महिमा अपरंपार,
चामुंडा बन तू आजा माँ होके गधा सवार।
रूद्राणी, भैरवी कर तू दुष्टों का संहार,
काली कराली माँ तेरी जयजयकार।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
बलिया (उत्तर प्रदेश)

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