जय माँ शारदे
नमन बदलाव मंच
साप्ताहिक प्रतियोगिता के लिए
*नारी -शक्ति* विषय पर मेरी रचना सादर प्रस्तुत है।
*उड़ान मेरी है*
यह दुनिया जितनी तुम्हारी है
उतनी हमारी भी है
स्वाभिमान की आंँच, संघर्ष की तपिश, कुछ कर गुजरने की हौसला अफजाई है।।
आधी आबादी का पूरा हक दो, जिसके हम हकदार हैं।
शिक्षा, समानता, संपत्ति, रोजगार के दावेदार हैं।।
दोस्तों और दुश्मनों की पहचान है
मैं अब जागरुक हूंँ।
सरकारी सुविधाओं के साथ अधिकारों की जानकार हूंँ।।
बाजारीकरण के दौर में मुकाम तलाश रही हूंँ।
सारे जद्दोजहद के बीच मैं खुद को तराश रही हूंँ।।
कहीं खाप पंचायतें तो कहीं पारिवारिक सांस्कृतिक जड़ताएंँ हैं। आधुनिकता की परिभाषा गढ़ती, बहुआयामी समानताएंँ हैं।।
मैं न पहनूंँ त्याग, सहनशीलता और शर्मीलेपन का ताज।
मैं तो जानूंँ अधिकारों कर्तव्यों को, रखूंँ स्वाभिमान की लाज।।
दुर्गा, काली, जगतजननी, सत्यरूपा, ऋतंभरा, दुखहारिनी हूंँ।
अपने गमों को छोड़, मांँ-बहन-बेटी अर्धांगिनी हूंँ।।
कहीं ममता की मूरत, कहीं कानून की मसीहा हूंँ।
कहीं कल्पना चावला तो कहीं जागृत करती निर्भया हूंँ।।
मैं सशक्त हूंँ न तुम कमजोर, न मेरे प्रतिद्वंदी।
बदल लो नजरिया, तुम तो मेरे चिरसंगी।।
प्रतिस्पर्धा के बावजूद दबदबा है मेरा।
संस्कृति-परंपरा को निभाने का वजूद है मेरा।।
उड़ने दो मुक्त गगन में, ऊंँचाइयों को छूने दो।
करो मत सहयोग तुम, पर रोको ना रास्ते को।।
निराशा के क्षणों में संयमित, अंतरात्मा को सुनती हूंँ।
हार के पीछे जीत छुपी है,
रसोई से एवरेस्ट पर हूंँ।।
देश की दशा और दिशा बदल रही हूंँ मैं।
फैसले की घड़ी है,
*उड़ान मेरी है*,
मजबूत इरादों से किस्मत बदल रही हूंँ मैं।।
*मीनू मीनल*
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