कवि सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता" जी द्वारा रचना “मुश्किलों का दौर है"

मुश्किलों का दौर है 

ध्यान है किस तरफ देखता किस ओर है
हालात की मज़बूरी  मुश्किलों का दौर है

उम्मीद की रौशनी में  घुप अँधेरा  घोर है
वक़्त की तगाजगी मुश्किलों का  दौर है

इंसानियत ख़त्म हुईं दुश्मनों का शौर  है
लोग बेकाबू हुए की मुश्किलों का दौर है

आदमी बेबस बना खयानतों का जोर है
सरकारें नित खेलती मुश्किलों का दौर है 

मन व्यथित हो उठा ना हुईं कोई भोर है
नैतिक पतन हो गया मुश्किलों का दौर है

"उड़ता"कुछ अच्छा नहीं अंदर मेरे चोर है
खुद की नज़रों में गिरा मुश्किलों का दौर है



स्वरचित मौलिक रचना 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )

udtasonu2003@gmail.com

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