कविता :
" मेरे गाँव में है "
मेरे आँगन में गौरैया , देखो खूब फुदकती हैं
दाना पानी खाकर मुझसे , अंबर में उड़ जाती हैं
ये अलबेलापन मेरे गाँव में है
भोर भए अमुआ की डाली, पर कोयलिया गाती है
सजन बिना सजनी देखो , दर्पण में ही मुस्काती है
ये अलबेलापन . . .
सूरज की पहली किरणें , नदियों से मिलने आती हैं
कंचन जल में नहा के माँ , दीपक रोज लगाती है
ये अलबेलापन. . .
खेतों में गेहूँ की बाली , हवा से बातें करती हैं
सरसों के फूलों से तितली , रस पीकर उड़ जाती है
ये अलबेलापन . . .
त्यौहारों की छटा निराली , हर घर में खुशहाली है
राम - रहीम के घर में देखो, रोज ईद -दिवाली है
ये अलबेलापन . . .
सोंधी-सोंधी खुशबू मेरे, गाँव की मिट्टी से आती है
फूलों के बागों में जैसे, नई ऋतु सी आती है
ये अलबेलापन . . .
- विनोद नायक
श्री हनुमानजी मंदिर के पास,
खरबी रोड़ , शक्तिमातानगर ,
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