कवि विनोद नायक जी द्वारा 'मेरे गाँव में है' विषय पर रचना

कविता :      

" मेरे गाँव में है "

मेरे आँगन में गौरैया , देखो खूब फुदकती हैं
दाना पानी खाकर मुझसे , अंबर में उड़ जाती हैं
ये अलबेलापन मेरे गाँव  में है 

भोर भए अमुआ की डाली, पर कोयलिया गाती है
सजन बिना सजनी देखो , दर्पण में ही मुस्काती है 
ये अलबेलापन . . .

सूरज की पहली किरणें , नदियों से मिलने आती हैं
कंचन जल में नहा के माँ , दीपक रोज लगाती है
ये अलबेलापन. . .

खेतों में गेहूँ की बाली , हवा से बातें करती हैं
सरसों के फूलों से तितली , रस पीकर उड़ जाती है 
ये अलबेलापन . . .

त्यौहारों की छटा निराली , हर घर में खुशहाली है
राम - रहीम के घर में देखो,  रोज ईद -दिवाली है 
ये अलबेलापन . . .

सोंधी-सोंधी खुशबू मेरे, गाँव की मिट्टी से आती है 
फूलों के बागों में जैसे,  नई ऋतु सी आती है
ये अलबेलापन . . .

- विनोद नायक 
श्री हनुमानजी मंदिर के पास, 
खरबी रोड़ , शक्तिमातानगर , 
नागपुर  ૪૪००२૪, महाराष्ट्र ,भारत

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