कवयित्री प्रियंका साव जी द्वारा 'मेरा श्रृंगार उन्हीं के नाम' विषय पर रचना

*मेरा श्रृंगार उन्हीं के नाम*

मेरे पूरे शरीर पर सोलह श्रृंगार 
उन्हीं की नाम की सजती है, 
मेरी दुनिया तो 
उन्ही की दुनिया मे बस्ती है। 

सिंदूर मेरे मांग सजी,  
उम्र उनका बढ़ाती है। 
बिंदिया मेरे माथे पर लगी, 
चेहरा उनका खिलाती है। 

होठों पर लाली मेरी लगी,  
मुस्कान उनके लबों पर आती है, 
जो कंगन हाथों मेरे खनके, 
दिल उनका धड़क-सी जाती है।

मेहंदी मेरी हाथों मे लगी, 
नाम सजना का रचती है। 
*गहरा रंग हो मेरी मेहंदी का 
पर प्यार उन्ही का कहलाती है।*

मेरे बालों मे लगे गजरे 
घर उनका महकाती है, 
मेरे पैरों की पायल, 
उनके घर को छनकाती है। 

और इन सबके स्थान पर
मैं उनसे  चाहती हूँ तो बस  
थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा आदर
और थोड़ा सा सम्मान। 

स्वरचित कविता 
प्रियंका साव
पूर्व बर्द्धमान,पश्चिम बंगाल

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