बेइंतहा दर्द से जन्मी एक कविता
अबकी बारी
कलियों से फूल बन खिलती है बेटियांँ
उपवन को सुवासित करती हैं बेटियांँ
चंपा,चमेली,जूही बनती है बेटियांँ
गुलाबों के आन-बान में बसती है बेटियांँ
अरे, इस बगिया को उजाड़ने वालों
कायरता को मर्दानगी बताने वालों
क्या तेरे पुंसत्व की यही है परिभाषा?
छठी में तेरी मांँ की यही थी अभिलाषा?
बाहर न मिली तो बहनों पर झपटोगे?
तेरे कुकर्मों से माएंँ जो मरती हैं
पलछिन निज कोखों कोसती रहती हैं
क्यों न घोंटा गला जन्म लेते ही
क्यों मुस्कुराई इसके रोते ही ?
थालियांँ बजाऊँगी के बेटी के जन्म की
भ्रूण हत्या करूंँगी बेटों के गर्भ की
वंश वृक्ष बढ़ाने वाले रक्तबीज न बन पाओगे
*अबकी बारी* तेरी है, मांद में कुचले जाओगे।
मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ
राँची
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