कवि चन्द्र प्रकाश गुप्त जी द्वारा 'जननी जगदम्बा' विषय पर रचना

बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
(दिनांक 18 अक्टूबर से 24 अक्टूबर)


विषय- नवरात्रि

शीर्षक -  *जननी जगदम्बा*

हे जननी जगदम्बा तुम ही हो शक्ति हमारी

मेरे मन हृदय में बसती अक्षय नवधा भक्ति तुम्हारी

युगों युगों से मां हम आते तेरे ही गुण गाते

विधाता विष्णु महेश सदा तुम से ही यश पाते

जब जब मनुजता भय से कांपी तूने उसे बचाया

मां जग ने तुझको पाया तूने ही जग को जाया

जिसको मिल जाती तेरे आंचल की छाया

शक्ति सृजन हो जाता हो जाती निर्मल काया

तुम ही शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा की साया

कूष्माण्डा स्कंदमाता कात्यायनी की माया

कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री की छाया

मानवता अभी कराह रही है नहीं कोई बचाने आया

मां व्रत वही निभाओ युग युग जिसे निभाया

मां महिषासुरों का मर्दन करने एक बार फिर आ जाओ

बेसुध पड़ी मनुजता को दान शक्ति का दे जाओ

हे जननी जगदम्बा तुम ही हो शक्ति हमारी

मेरे मन हृदय में बसती अक्षय नवधा भक्ति तुम्हारी

   
    जय भवानी जय भारत

       चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
        अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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