कवि प्रकाश मेहता जी द्वारा रचना “आई नवरात्री”

*आई नवरात्री...* 
तुम्हारी शरण मिल गई हे दुग्रे मां ,
तुम्हारी कसम जिन्दगी मिल गई ।
हमें देखने वाला कोई ना था,
तुम जो मिली बन्दगी मिल गई।

बचाती न तुम डूब जाते मैया ,
कैसे लगाती किनारे पे नैया,
ग़म-ए-जिंदगी से                  
रोते लबों को हँसी मिल गई ।
हमें देखने वाला कोई ना था,               तुम जो मिली बन्दगी मिल गई।

समझ के अनाडी सताती ये दुनिया,
सितम पे सितम हम पे ढाती ये दुनिया,
गनीमत है ये तुम मेरे साथ हो,
मुझे आपकी बंदगी मिल गई मैया ।
हमें देखने वाला कोई ना था,              तुम जो मिली बन्दगी मिल गई।

मुझे मां तुम पे भरोसा बहुत है,
तुमने हमें शक्ति देकर निडर बनाया,
आंखों का मेरा *"प्रकाश"* हो तुम,
अंधकार को रोशनी मिल गई ।
हमें देखने वाला कोई ना था,                           तुम जो मिली बन्दगी मिल गई।

मुझे मां इतना काबिल बना दो,
प्रेम की ज्योति हृदय में जगा दो,
ऊँगली उठाकर कोई ना कहे,
की दिल में अंधेरा है,
हमें देखने वाला कोई ना था ,                           तुम जो मिली बन्दगी मिल गई।

*डॉ प्रकाश मेहता, बेंगलुरु*

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