कवयित्री नेहा जैन जी द्वारा रचना “आत्मनिर्भरता के इस दौर में आओ हम स्वदेशी को अपनाए”

आत्मनिर्भरता के इस दौर में 
आओ हम स्वदेशी को अपनाए
देश को अपने मजबूत बनाए
खादी गाँधी को प्रिय थी
शोभा उनकी बढ़ाती थी
मान सम्मान का प्रतीक ये
भारत का अभिमान  बढ़ाती है
सूत मेरे भारत का कितना महीन होता था
विदेशी भी जिसका बखान करते थे
कपड़े को जब हाथ पर लेते थे उसका वजन न मालूम होता था
सोने की चिड़िया देश था मेरा
चलो आज फिर वही सूत और खादी लाते हैं
भारत को पुनः अग्रणी बनाते हैं
गाँधी जी का स्वदेशी अपनाओ
आंदोलन फिर से हम चलाते हैं
खादी और सूत की है बात निराली
ये शांति और पवित्रता की निशानी है
आओ चरखे से धागा बनाए और धागे से खादी का हर सूत पिरोए
खादी की महिमा बड़ी पुरानी है
इसके हर सूत सूतमें हिंदुस्तान की रवानी है
आओ अब युवाओं में जोश जगा दे
सूती और खादी का परचम लहरा दे
भारत को फिर वही मयूर सिंहासन दिलवा दे
बहुत हुआ अब और नही
विदेशी वस्त्रों का त्याग करो
खादी औऱ सूत का प्रयोग करो।।

स्वरचित
नेहाजैन

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