कवि निर्मल जैन “नीर" जी द्वारा रचना (विषय-दिखावा)

दिखावा.....
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जाने क्यों 
करते हैं लोग 
दुनिया के
समक्ष दिखावा
हर रोज़
एक चेहरे पर
होता है
एक नया चेहरा
अच्छे और
हितेषी होनें का
करते ढोंग
भीतर से होते
उनके
काले कारनामें
मुख पर
मीठी मुस्कान
जो होती
सिर्फ और सिर्फ़
एक छलावा.......!!!

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      निर्मल जैन 'नीर'
    ऋषभदेव/उदयपुर

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