कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा रचना “आईना"

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           आईना
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देखना है! अक्स अपनी खूबसूरती का,
      अपनें अंतर्मन के आईने में झांक लो!
           दूसरा कोई ऐसा स्वच्छ आईना नही,
             जिसमें दिल की गहराई को माप लो!
अच्छे-बुरे कर्मो का अक्स अंतरात्मा,
    उसी आईने में खुद को जरा निहार लो!
        मन से बड़ा कोई दर्पण इस जहाँ में नहीं,
            सुन्दर भावों और निर्मल विचार लो!
  फर्ज अपनें कर्म से सुंदर बनाओ छवि,
       अपनें को दर्पण में जरा निखार लो!
          आईना कभी होता शापित ही नही,
               कलुषित, शापित विचारों को सुधार लो!
अपनी कमजोरियां और हर बुराइयों की,
     गवाहियों का दर्पण मन को मत बिगाड़ लो!
         तन की खूबसूरती का कोई अस्तित्व तो नही,
            कितना भी चाहे, ढलती उम्र को संभाल लो!
छवि बना कर अपनें सुन्दर विचार से,
      अपनी मुट्ठी में सारा जहाँ उतार लो!
          मन का मैल कर्म-जल से स्वच्छ कर,
             जीतना है जिंदगी में तुम थोड़ा हार लो!
              सबकों देकर खुश्बू अपनें व्यवहार का,
अपनें अंतर्मन के आईने में कर निज श्रृंगार लो!
      बना लो अपनी जिंदगी को खूबसूरत,
         अपना ही अक्स देख थोड़ा मुस्कुरा लो!
          एक शापित आईने को अपने सुविचार से
             सुंदरता का एक आधार दो!
  तुम मत करो निर्माण ऐसे आईने का 
देख  डर जाये हम ना खुद कहीं बिचार लो!
  एक नया आयाम दो अपनी खूबसूरती को,
   मन के आईने में सुविचार का अक्स डाल दो!
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   समाप्त
लेखिका :-शशिलता पाण्डेय
स्वरचित और मौलिक
  सर्वाधिकार सुरक्षित          

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