कवयित्री शशिलता पाण्डेय 'गुलाब' विषय पर रचना

किताब में छुपा गुलाब
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गुलाब का अप्रतिम सौंदर्य,
झूमें गायें अपनी डाली पर।
प्रणय निवेदन का वो प्रतीक,
उसे गर्व है अपने माली पर।
किसी की यादों का  प्रतीक,
जब किताबो में दबा होता है।
किसी की यादों में हो बलिदान,
छुपके-चुपके मुरझाकर रोता है।
कोमल पंखुड़ी होती फूलों की,
लाल सुर्ख गुलाब है शहंशाह।
इसे प्रतीक ना बनाओ यादों की,
मन को करते आकर्षित गुलाब।
मत तोड़ो  या दबाओ किताबो में,
मस्ती में गीत गाते अपनी डाली पर।
कितने खूबसूरत लगते खिले हुए,
काम आते प्रणय निवेदन खुशहाली पर।
गुलाब की खूबसूरती सुकून देती आँखों को,
 मत बाँधो खूबसूरती को किसी आकर्षण में।
क्योकि गुलाब की खूबसूरती पर ,
पहरा काँटो का जो चुभाते शूल।
जरूरी नही जो ऊपर से परिलक्षित सुन्दर,
 खूबसूरत भी हो उसका दिल।
 पर किसी भी खूबसूरती को अपने ,
सुकून के लिए किताबो में दबाना ठीक नही।
 मुस्कुराने का हक होता उसे भी चमन में,
अपनी भावनाओं को जिंदा रखने को।
 किसी कोमल फूलो को दबाओ न किताबो में,
 खिलने मुस्कुराने दो डाली पर सुर्ख गुलाब को।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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