सादर समीक्षार्थ
विधा - ग़ज़ल
हर बार तुम रूठी ही रहो
मैं तुम्हें बस मनाता रहूँ
बात बात पर मैं तुम्हारी
खुशामदें ही बस करता हूँ..।।
प्यार किया कोई खेल नहीं
मोहब्बत करते हैं हम तुमसे
इस बात से हमें इंकार नहीं
क्या तुम्हें हमसे प्यार नहीं..।।
किसी बेबस को सताते नहीं
गुनाह हसीन करते नहीं
दो दिन की जिंदगी है जानम
इतना इतराया करते नहीं..।।
माना कि बेहद हँसी हो तुम
फूलों को क्यों मसलती तुम
ख्वाबों सी क्यों मचलती हो तुम
मुट्ठी की रेत सी फिसलती तुम
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
0 टिप्पणियाँ