कवि डॉ. प्रकाश मेहता जी द्वारा रचना। “नूतन वर्ष" की मंगल भावना"

*"नूतन वर्ष" की मंगल भावना.!!*
*मंगल-मंगल होय जगत् में, सब मंगलमय होय।*
*इस धरती के हर प्राणी का, मन मंगलमय होय।*
कहीं क्लेश का लेश रहे ना, दुःख कहीं भी ना होय।
मन में चिन्ता भय न सतावे, रोग-शोक नहीं होय।
नहीं वैर अभिमान हो मन में, क्षोभ कभी नहीं होय।
मैत्री प्रेम का भाव रहे नित, मन मंगलमय होय।  
मंगल-मंगल.....
मन का सब संताप मिटे अरु, अन्तर उज्वल होय।
राग द्वेष और मोह मिट जाये, आतम निर्मल होय।
प्रभु का मंगलगान करे सब, पापों का क्षय होय।
इस जग के हर प्राणी का हर दिन, मंगलमय होय।
मंगल-मंगल....
गुरु हो मंगल, प्रभु हो मंगल, धर्म सूमंगल होय।
 मात-पिता का जीवन मंगल, परिजन मंगल होय।
जन का मंगल, गण का मंगल, मन का मंगल होय।
राजा-प्रजा सभी का मंगल, धरा वसुधैव कुटुंबकम् होय। 
मंगल-मंगल.....
मंगलमय हो प्रति दिन हमारा, रात सूमंगल होय।
जीवन के हर पल हर क्षण की बात सूमंगल होय।
 घर-घर में मंगल छा जावे, जन-जन मंगल होय।
 इस धरती का कण-कण पावन औ मंगलमय होय। 
*मंगल-मंगल....*
*सब जग में मंगल बढ़े, टले अमंगल भाव।*
*है "डॉ प्रकाश" की भावना, सब में हो सद्भाव।*
इस मंगल भावना के चिंतन मनन से सकारात्मकता मे अदभुत वृद्धी होती है। परिणाम मे शुद्धता आती है। तथा पाप कर्म क्षय होकर शुभ बन्ध होते है।

*"प्रकाश" वाणी...*
*हमसब उस दीपक की तरह है, जिसमें प्रर्याप्त तेल है, आवश्यकता उस चिंगारी की है जो हमें रोशन कर दे।*
*सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा।* 
*अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम्।* 
*जब चहुँ ओर घना अंधकार फैल रहा हो, आंधी सिर पर से गुजर रही हो तो हम जो दिया जलाएं, उसकी दिवट "सत्य" की हो, उसमें तेल "तप" का हो, उसकी बात्ती "दया" की हो और लौ "क्षमा" की हो।* 
*समाज में फैले अंधकार को नष्ट करने के लिए ऐसे ही "प्रकाश" रूपी दीप प्रज्जवलित करने की आवश्यकता है।*

*-डॉ.प्रकाश मेहता*

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