कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा सुंदर रचना

प्रकाश का पर्व
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हर ओर जगमग-जगमग रोशनी,
जलते दीयों की लम्बी कतार।
देखो!अदभुत छटा निराली,
आया रोशनी का त्योहार।
खुशियों भरी झिलमिल दीवाली,
मिटाएँ हृदय का गहनतम तिमिर।
मन को आलोकित करती दीवाली,
दीपक की बाती खुद जल कर।
प्रकाश फैलाना सिखाती चमकीली,
अन्याय मिटाना प्रेम का दीपक जलाकर।
दीप जलाकर विजयपर्व संदेश देती दिवाली,
राम- विजय की खुशियाँ मनाकर।
रावण के अत्याचार को जलाती दीवाली,
देती सुख,समृद्धि और खुशियाँ मधुर।
करते धनलक्ष्मी की पूजा आराधना हर दीपावली,,
विघ्नहर्ता गणपति को लड्डू चढ़ाकर।
बाँटे प्रेम से मिठाई मधुर प्रेम जतानेवाली,
साफ-सफाई और दिए में जलाकर।
कीटाणु-विषाणु के असुर का संहार करती दीवाली,
अमावस्या के सघन अँधेरो को रोशन कर।
मन का तम भी दूर करती जगमग दीवाली,
 सिखाती दिल मे प्रेम का ज्योति जलाकर।
दिल से दिलो का मिलन है दीवाली,
 मची है सर्वत्र फुलझड़ियाँ पटाखें के शोर।
सबकों गले लगाना सिखाती दीवाली,
 जलता मन का दीया रोशनी बिखराकर।
 उत्साह से तूफानों से लड़ना सिखाती दीवाली,
मुसीबत के अंधेरे में फैलाना प्रकाश दीये सा जलकर।
तूफानों से भी नही बुझना सिखाती दीवाली,
खुश रहें हम जगमग रोशनी का पर्व मनाकर।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
रचनाकारा:शशिलता पाण्डेय
बलिया ( उत्तर प्रदेश)

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