स्वरचित रचना*
*मुस्कुराना जरूरी है*
मुस्कुराना जरूरी है।
अंदर के भावों को
बाहर लाना जरूरी है।।
भले लाखो गम हो।
कितना अन्तः मन में
किन्तु स्वछंदता के साथ
खिलखिलाना जरूरी है।।
मुस्कुराने से चेहरा खिलता है।
खोया हुआ विस्वास जगता है।।
हर बार हारने के बाद भी फिरसे
जीत हेतु तैयार हो जाना जरूरी है।।
कभी दूसरों के लिए कभी अपने लिए।
कभी हकीकत तो कभी सपने के लिए।।
आगे पीछे की परवाह किये बग़ैर।
जोर जोर से ठहाके लगाना जरूरी है।
हर बार आँशु की धार के बाद
खुशी से इठलाना जरूरी है।
दम लगाकर सभी गमों से
पुर्णतः बाहर आना जरूरी है।।
हर दर्द से बेफिक्र होकर ही
लापरवाही दिखलाना जरूरी है।
अंदर हो बाहर हो हर तरफ
फूल सा हो जाना जरूरी है।।
*प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"*
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