स्वेता कुमारी जी द्वारा#खूबसूरत रचना#

मैं और मेरी तन्हाई
हम जब भी होते है अकेले,
ना जाने क्या हैं सोचते,
कभी हँसी तो कभी आँशु,
आते हैं तब मुख पे,
ना जाने क्या हैं सोचते,
जब हम बैठते हैं अकेले।

पुरानी बातों का होता है एक संग्रह,
दिल के किसी कोने में,
कुरेदते हैं हम सभी यादों को,
जब होते हैं हम अकेले में,
ना जाने क्या हैं सोचते,
जब हम बैठते हैं अकेले में।

कुछ अच्छी यादों को जी लेते है वापस,
जब याद आती है वो लम्हे,
जिसे कभी जिया था दिल से ,
तुमने और हमने।
ना जाने क्या हैं सोचते,
जब बैठते हैं हम अकेले में।

कुछ यादों की होती है वजूद बिखरी,
देती है जो तकलीफ दिल को अधूरी।
माना था जिसे दिल से अपना,
उसी ने तोड़ी मेरी दिल्लगी।
हमने तो लुटा दी थी जान उसपर,
ना जाने कौन बन गया ,
हमारे और तुम्हारे बीच की दूरी।
ना जाने क्या हैं हम सोचते,
जब बैठते हैं हम अकेले।।


कभी कभी बैठ जाती हूँ ,
रातों में अकेले,
कुदरत को भी है मेरी फिक्र जैसे,
जागते रहते हैं रात भर,
जैसे मेरे लिए सितारे।
ना जाने क्या हैं सोचते,
जब होते हैं हम अकेले।।

एक सुकून सा है मिलता,
जब मिलते है मैं और मेरे दिल का टुकड़ा।
महफूज होती है मेरी तन्हाई,
जब महसूस होती है किसी की रुसवाई।
चाँद भी है वाकिफ ,अब मेरी इस तन्हाई से,
ना होना  दूर कभी ,मुझे और मेरी तन्हाइयों से।।
धन्यवाद
स्वरचित रचना
स्वेता कुमारी
धुर्वा, रांची
झारखंड।

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