शशिलता पाण्डेय जी द्वारा#रुमाल#

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   रुमाल
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ये बड़ा कमाल होता चीर का टुकड़ा,
माँ के आँचल की तरह पोछता मुखड़ा।
कहते इसे रुमाल साथ देती ये कमाल,
दुख-सुख में देती साथ हर वक्त ये रुमाल।
हाँथ में रहे कभी जेब मे रहती हमेशा संग,
मिलते बाजारों में इसके होते अनेक रंग।
आँसू पोछती दुख या खुशी की बात,
दिलाये याद खास चाहे पहली मुलाकात।
किसी को सहानुभूति देती हुई बेमिसाल,
आगे करके रुमाल आँसू ना गिरे गाल।
सुंगन्धित रुमाल यादों को रखती संभाल,
बहती हुई नाक को भी संभालती हर हाल।
ये बड़ा कमाल होता चीर का टुकड़ा,
क्षणभर में दूर करता कोई भी दुखड़ा।
चोट कहीं लग जाये या पाँव हो घायल,
छोटी सी रुमाल के हर गुण के सब कायल।
दुर्गन्धयुक्त मार्ग से गुजरते रख नाक पर रुमाल,
मास्क के विकल्प में होता इसका इस्तेमाल।
आँखों मे दर्द हो या आँखे हो जाये लाल,
उसको भी ढकते आँखों पर रख पीला रुमाल
तेज धूप लगने से करती रुमाल ही बचाव,
बहते हुए आँसू या नाक रोकती दोनों का बहाव।
सब्जी बाँध लाइये या बाँधना पड़े पूजा-प्रसाद,
सबसे पहले आती ये रुमाल की ही याद।
गर्मी में पसीना सुखाती हर वक्त पोंछकर चेहरा,
परिचय बढ़ाने के लिए भी लोग बनाते इसे मोहरा।
हर गंदगी को साफ करती हुई बनती कभी नकाब,
क्या-क्या बतायें इसकी खुबियाँ ये तो है बेहिसाब।
चाय या गर्म दूध इसके सहारे फूंक-फूँक पीते,
हर वक्त रुमाल साथ रखने से सुरक्षा हम पाते।
अच्छे इंसान सा साथ देता रुमाल का कपड़ा,
ये बड़ा कमाल होता ये चीर का टुकड़ा,।
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स्वरचित या मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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