संस्कार पर दोहे - समीक्षार्थ
एक सा ही पालन किया , बच्चो को माँ बाप ।
एक संस्कारी है बना ,एक करता है पाप ।।
एक जा रहा मंदिर है । एक पड़ा मदिरालय ।
कारण समझे न इसका , जाये न शिवालय ।।
बात करे संस्कार की , दिल पर करते चोट ।
कहते रहते है सत्य , मन में रखते खोट ।।
बिगड़ गये संस्कार है , भोग रहा परिवार ।
सफल जनम करो अपना , अपना लो संस्कार ।।
तुम को होगा बदलना , अपना ही स्वभाव ।
करते सब तिरस्कार है , दिल पर देते घाव ।।
फूलो की तरह महको , सबका करो सत्कार ।
मिले तुम्हें अपार खुशी , सब माने उपकार ।।
धारे मन संस्कार जो , मिले बैकुंठ धाम ।
जग में मिलती है कीर्ति,चले चार जो धाम ।
डॉ.अलका पाण्डेय
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