पूजा नबीरा काटोल जी द्वारा खूबसूरत रचना#

लघुकथा 

भाईचारा..... 
प्रतियोगिता हेतु 
जिंदगी के रेगिस्तान में कब गर्म रेत भट्टी बन कर तन ही नहीं मन को भी झुलसा दे किसे पता. यूँ तो 
बौद्धिक संपन्न लोग ये जुमला दोहरा रहे हैं.. चुनौती के कोरोना काल को अवसर में परिवर्तित कीजिये किन्तु जानकी के लिये जीवन ही चुनौती बन गया दूर मजदूरी को गया मरद दुर्घटना की चपेट में आ गया. ना कोई साधन ना खबर ना ही अंतिम क्रिया बस उड़ती खबरों से ही हृदय पर पत्थर रखना पड़ा घर में खाने के लाले और काम भी बंद. एक दिन बदहवास सी गिड़गिड़ा कर गुहार की इकलौते बेटे की रिपोर्ट पोजेटिव आई है कोई दवाखाना लेने को तैयार नहीं पैसे जो नहीं थे.आत्मा सी द्रवित हो गई. हम कुछ लोगों ने इसका बीड़ा उठाया कुछ फोन  किये उसे एडमिट कराया पैसो की व्यवस्था  दो दिन में कुछ मेहनत से कर ली गई. फिर धीरे धीरे सभी के सहयोग से सब्जी की एक दुकान लगा कर दे दी... बेटे की तबियत का जिम्मा  भी हमने ले लिया और हालातों में सुधार होने लगा इस तरह उसकी टूटी आस को सहारा मिला और आशीर्वाद  से हमारी खाली झोली भर गई कुछ लोगों के द्वारा लिये गये छोटे -छोटे प्रयासों से उसकी जीवन आस बच गई और लोगों में भाई चारे द्वारा किया यह प्रयास प्रेरणा बन गया और कई लोगों के द्वारा इस तरह की कोशिश की जाने लगी एक छोटी सी ही सही किन्तु सार्थक पहल ने हमें सकून से भर दिया. 
पूजा नबीरा काटोल 
नागपुर महाराष्ट्र 
स्वरचित

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