कवि निर्मल जैन नीर जी द्वारा रचना ‘हिमालय सा’

हिमालय सा....
*********************
पुरूष
हिमालय सा
अडिग
हर परिस्थिति में
अविचल
श्रीफल सा कठोर
मगर भीतर 
कोमल हृदय उसका
बच्चों के लिए
होता खुला आसमान
परिवार की
आन-बान-शान
भीतर लहराता दर्द का
अथाह सागर
फिर भी उसके
चेहरे पर थिरकती
एक प्यारी सी
मीठी सी मुस्कान...!!!

*********************
निर्मल जैन 'नीर'
ऋषभदेव/उदयपुर
राजस्थान

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ