कवि निर्दोष लक्ष्य जैन द्वारा 'देश की सेवा' विषय पर रचना

करो इस देश की सेवा 

     करो  इस  देश  की  सेवा 
              यहीं  जन्नत  हमारी है 
    इधर   लहराती  गंगा    है 
              उधर  हिमालय  प्रहरी है 
   यहीं  चारों धाम  है  अपने 
             यही  तो  मथुरा काशी है 
   यहीं  श्री राम  जन्मे   है 
             यहीं   हनुमान  जन्मे है 
   यहीं  जन्मे   कन्हैया  है 
            यहीं अवतार  चौबीसों 
    तीर्थंकरों   ने   लिया  है 
              यहीं पर सत्य अहिंसा 
     धर्म का डंका बजाया है 
            धर्म क्या है सत्य क्या है 
     ये दुनियाँ कॊ  दिखाया है 
         . करो इस मिट्टी का तिलक 
     यहीं तो  तीर्थ हमारा  है 
             करो  इस देश की   सेवा 
    यहीं  जन्नत   हमारी है 

           स्वरचित ......निर्दोष लक्ष्य जैन

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