बदलाव मंच की साप्ताहिक प्रतियोगिता के लिऐ दीपोत्सव विषय पर मेरी लिखी ग़ज़ल पेशेखिदमत है.
दिल भरा है दर्द से सभी की जेब खाली है.
ये दिवाली सच कहूँ नहीं भली दिवाली है.
गिर रहें हैं गुल सभी रहे शजर हैं हिल सभी.
मुस्कुरा रहीं खिज़ाऐं रोऐ आज माली है.
तीन दीप देहरी पे मैं जलाने वाली हूँ.
राम जी लखन सिया मनाने बाती बाली है.
हँस तो रहे हैं लोग फुलझड़ी जला रहे.
आँख में नमी भरी हँसी खुशी ये जाली है.
ना दिखें पटाखे ना दिखें मिठाइयाँ हमें.
चाँद मेघ में छिपा हुआ है रात काली है.
इस जहाँ के पाप राम जी बिसार दो.
दो रहम की भीख ये जहाँ बना सवाली है.
दिल भरा है दर्द से सभी की जेब खाली है.
*अभिलाज*
मुंबई से.
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