रौशनी का त्यौहार
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पाके विजय लंका से लौटे राम निज दरबार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का त्यौहार।
पुरुषों में राम पुरुषोतम थे।
सदगुण,सदभाव में उत्तम थे।
तम - गम सबका हरने वाले -
मानवता मय सर्वोतम थे।
सर्वोपरि अनूठा अदभुत वाणी , बुध्दि विचार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का त्यौहार।
यह ज्योति पर्व अति आला है ।
नयनाभिराम सु - निराला है।
अगणित दीपों की ज्योति से-
करता सर्वत्र उजाला है ।
निज अन्तः उजियार करो यहीं देता सुख सार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का त्यौहार ।
एकता ,समता में आ करके।
सत्य, दया ,धर्म अपना करके।
ऊँच-निच,भेद-भाव आदि का -
भयंकर भूत भगा करके।
ज्योति पर्व से जागृत हो करें सदा सबही से प्यार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का त्योहार ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)८४१५०८
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