कवि बाबूराम सिंह कवि जी द्वारा रचना ‘रौशनी का त्यौहार'

रौशनी का त्यौहार
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पाके  विजय लंका  से लौटे राम निज  दरबार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का त्यौहार।

      पुरुषों में राम पुरुषोतम थे।
          सदगुण,सदभाव में उत्तम थे।
           तम - गम  सबका  हरने वाले -
            मानवता    मय   सर्वोतम थे।

सर्वोपरि अनूठा  अदभुत  वाणी , बुध्दि  विचार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का  त्यौहार।

  यह ज्योति पर्व अति आला है ।
     नयनाभिराम  सु - निराला   है।
        अगणित  दीपों  की  ज्योति से-
           करता     सर्वत्र     उजाला  है ।

निज अन्तः उजियार करो यहीं देता सुख सार।
रौशन हुआ तभी से जग में रौशनी का त्यौहार ।

    एकता ,समता में आ करके।
         सत्य, दया ,धर्म अपना करके।
           ऊँच-निच,भेद-भाव आदि  का -
            भयंकर    भूत    भगा करके।

ज्योति पर्व से जागृत हो करें सदा सबही से प्यार।
रौशन  हुआ तभी से  जग में रौशनी  का त्योहार ।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज(बिहार)८४१५०८

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