कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा रचना ‘पुरुष दिवस'

बदलाव मंच को नमन
 आज के विषय पर आधारित रचना
 शीर्षक पुरुष दिवस


 पुरुष आज भी समाज का नायक है होता।
परिवार भरण-पोषण हेतु आराम से न सोता।

जिम्मेदारियों  का  बोझ  हरदम  है   उठाता।
फिर  भी  कभी  नहीं वह है देखो घबड़ाता।

निज इच्छाओं को भी अपने करता है अर्पण।
मार्गदर्शक वन परिवार को दिखाता है दर्पण।

बरगद  की  शीतल  छाया  बन  स्वयं  तपता ।
खुद की परवाह ना कर कष्टों को भी सहता।

 पिता,भाई, पति,सुत समाज में  अनेक रूप।
 रिश्ते नातों में होता निर्वहन रंक हो या भूप।

महान पुरुष बहुत हुए हैं नहीं हम अनजान।
इनके गुणों से तो भरा पड़ा है सारा जहान।

गीता नतमस्तक होकर इनको शीश झुकाई।
 पुरुष दिवस की ढेरों शुभकामना व बधाई।


 स्वरचित व मौलिक
गीता पांडे रायबरेली उत्तर प्रदेश

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