क्योंकि लड़के रोते नहीं
अपने एहसासों को,
पत्थर कर जाते हैं ।
अपनी जिम्मेदारियों को ,
ओढ़ बहुत बढे़ हो जाते हैं ।
दर्द हो भी ,
तो भी बहाना कर जाते हैं ।
आंसू को अपने ,
अंगार कर जाते हैं ।
आंख भर भी आए ,
अंदर ही अंदर पी जाते हैं ।
अपने आंसुओं को ,
पारा कर जाते हैं ।
क्योंकि लड़के रोते नहीं हैं ।
अपने दिल को,
फौलाद कर जाते हैं ।
अपनी मासूमियत को ,
दबा -दबा के ,
अपने भीतर,
एक शैतान ,
खड़ा कर जाते हैं ।
वह कमजोर नहीं हो सकते ।
एक कवच ओढ जाते हैं ।
रोना भी चाहे तो ,
मर्द हो तुम ,
कह कर चुप करवा दिए जाते हैं।
क्योंकि लड़के रोते नहीं हैं ।
काश.......!
अगर लड़के रो लिए होते ।
अपने भीतर के,
मासूम बच्चे को ,
खो नहीं दिए होते ।।
हालातों से लड़कर ,
कुछ लड़के ,
मुजरिमों की लाइन में ,
यूं खड़े नहीं होते ।।
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