कवि ऐन के सरस्वती जी द्वारा रचना ‘मैं दीया हूँ’

मैं दीया हूँ

कोरोना काल मे मैं दीया बनकर,घर -घर गया ।
और देर सारे आशीर्वाद ,कभी नही बुझने का पाया ।।

मैंने संदेश दिया तम को दूर भागने का ,
लोगो की आँखों पर लगी काली पट्टी हटाने का ,
प्रदूषण फैलाते जहरीले पटाकों से दूर रहने का,
स्वदेशी समान खरीद मिट्टी का दीया जलाने का ।।
क्योंकि मैं दीया हूँ , मेरा फर्ज हैं,
प्रकाशपुंज भारत बनाने का ,

मैं दीया बनकर , बहुत से घरों में गया ,
लेकिन मेरा मतलब नही किसी को जलाने का ,
क्योंकि मैं जरिया हूँ दूसरों तक प्रकाश पहुँचाने का ,
मैं भटक रहा उस तिमिस को दूर भगाने को ,
क्योंकि मैं दीया हूँ , मेरा फर्ज हैं
प्रकाशपुंज भारत बनाने का ,

एक संदेश और छूट गया , लोगो तक पहुँचाने का ,
सरकार दे रही गाइड लाइन , मास्क जरूर लगाने का ,
सोशल डिस्टेंस का पालन कर , हेंड सेनेटाइजर लगाने का ,
पर मत भूलों तुम संस्कृति को हाथ जोड़कर अब चलने का ,
क्योंकि मैं दीया हूँ , मेरा फर्ज हैं,
प्रकाशपुंज भारत बनाने का ।

लोगो से मुझे अमर होने का वरदान मिला ,
और कभी नही बुझने का आशीर्वाद मिला ,
क्योंकि जब तक मैं हूँ तब तक
 कोई तम भी पर नही मार सकता ,
क्योंकि मैं दीया हूँ , मेरा फर्ज हैं ,
प्रकाशपुंज भारत बनाने का ।


ऐन के सरस्वती "नरसी"
कोटपूतली ( जयपुर)

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