कवि एम. मीमांसा द्वारा 'चाँद' विषय पर रचना

चाँद  से  भी   हसीं  मैं  बताता  रहूँ
रातरानी    तुझे    मैं   बुलाता   रहूँ
गीत में तुम बसो अब मेरे इस कदर
उम्र  भर  मैं   जिसे  गुनगुनाता  रहूँ

             एम. 'मीमांसा'

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