कवि सुरेंद्र सैनी जी द्वारा सुंदर रचना

कोई ज़िद है.. 

होशो - सुध की ज़िद है
खुद से खुद की ज़िद है
कर गुजरुं इन हाथों से
हौसलों की ना सरहद है
कुछ हासिल हो जाएगा
खब्त सर पर  आमद  है
क्या लिखा पक्का हुआ
वादों की अपनी सनद है
ना काम आए रिश्ते अपने
कोई साथ नहीं अगद' है (आगे )
सन्नाटों का शौर बहुत है 
यहीं लंका यहीं अवध है
सोच के देखा हो सपना
कर्मों से ही प्रतिज्ञाबद है
"उड़ता" जीवन सेज पर
तेरा हर अल्फाज़ शबद' है (बानी )


स्वरचित मौलिक रचना 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
udtasonu2003@gmail.com

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