बदलाव मंच
१८/११/२०२०
शीर्षक - तुम्हारे लिये
तुम्हारे लिये लिखती हूँ
तुम्हारे लिये गुनगुनाती हूँ ।.
तुम्हारे लिये ही जीति हूँ
तुम्हारे लिये ही मरती हूँ ।।
तुम्हारे लिये गीतों में सजती हूँ
तुम्हारे लिये पूलों सा खिलती हूँ
तुम्हारे लियें पूजा करती हूँ
तुम्हारे अरमान पूरे करती हूँ ।।
तुम्हारे लिये जुगनू सा जलती हूँ
तुम्हारे लिये ख़्वाब सजाती हूं ।।
तुम्हारे लिये मीरा बन विष पान करती हूँ ।
तुम्हारे लिये राधाबन हर पीड़ा सहती हूँ ।।
तुम्हारे बिना हर ख़्वाब अधूरा है
तुम्हारे बिना जीवन अधूरा है ।।
तुम्हारे लिये मेरी साँसें चलती है
तुम्हारे बिना उलझानें घेरा करती है ।।
तुम्हारे लिये दीपक सा जलती रहती हूँ ।
तुम्हारे लिये तम से लड़ती रहती हूँ ।।
तुम्हारे बिना अंधेरो में गुम रहती हूँ ।
तुम्हारे बिना खोज खुद की खुद से करती हूँ ।।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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