कवि प्रकाश कुमार मधुबनी "चंदन" द्वारा 'अटूट बन्धन' विषय पर रचना

*स्वरचित रचना*

*अटूट बन्धन*

प्रिशा आवाज लगाई दादी जी उठो चलो फ्रेश होकर नीचे आ जाओ आज दादा जी का सौवा जन्मदिन है आज चलो फ्रेश अप होने के बाद पूजा कर लो और नाश्ता कर लो दोनो साथ।
दादी जी ने कहा ठीक है मेरा डंडा कहाँ है ला दे जरा तेरे दादा जी को पहले प्रणाम करके उन्हें बधाई दे के आती हूँ। प्रिशा ने कहा कि ठीक है चलो मैं लेकर आपको चलती हूँ। प्रिशा ने दादी को सहारा देकर उठाया और साथ लेकर उन्हें आँगन में लेकर आई दादी ने दादा जी को देखा तो झुककर प्रणाम करने की कोशिश की तो दादाजी ने कहा अ रे रु रुको तू...म इतना मत झुको तुम्हे कमर दर्द है आजकल। दादीजी ने कहा कि वो तो है ही पर आज तो आपका झुककर प्रणाम कर लूं आज आपका जन्मदिन है आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई। अरे तभी आज मेरी रानी साहिबा सुबह सुबह मेरे पास चलकर आई है।छोड़ो तुम तो बस इस उम्र में भी सुरु हो जाते हो। प्रिशा बोली दादी और दादाजी जी आप दोनों प्रेम की बाते करिये और मैं आप दोनों के लिए चाय लेकर आती हूँ। दादी:
अरे प्रिशा तुम भी अपने लिए चाय लेते आना। प्रिशा अरे दादी आज मैं चाय नही पी सकती आज करवा चौथ है आज मैं भी 
करवा चौथ करूँगी। दादी माँ ने उत्तर दिया फिर क्या था दादा जी ने कहा कि तुम्हारा तबियत ठीक नही है जिद्द मत करो। अरे मैं 50 वर्ष और जियूँगा। तीनो हँसने लगे।फिर क्या था प्रिशा बोली दादी माँ दादाजी ठीक कहते है।तू चुप रह कहते हुए दादी ने चाय का प्याला अलग रख दिया। फिर क्या था प्रिशा के माँ बाबुजी दोनो ने समझाया किन्तु नहि मानी फिर दादी ने व्रत पूरा किया व रात में दादा जी ने रस्मों रिवाज के साथ दादीजी का व्रत खुलवाया फिर क्या था दादाजी को सभी ने रात में सरप्राइज कर दिया जब अचानक से बिजली गुल के बहाने सभी ने केक व साजोसामान जुटा कर दादाजी को सबने हैरान कर दिया।फिर सभी ने दादी को दुल्हन की तरह सजा दिया था सब कितने खुश थे शब्दों में बयाँ नही किया जा सकता फिर क्या था सभी खाना पीना खा कर सो गए।सुबह दादा जी व दादी दोने नही उठे तो डॉक्टर आया किन्तु जिसका डर था वही हुआ दोनों स्वर्गलोक को प्रस्थान कर चुके थे।दादी व दादा के प्रेम को देख सभी आश्चर्य थे। वैसे तो लोग साथ जीने मरने की कसमें खाते है किंतु ऐसा प्रेम सायद ही देखने को मिलता है।दोनों का एक साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।

*प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"*

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